आज चार दिवारी में बंद बैठा रेहता हूँ,
कब खत्म हो गा यह कहर, बस इसी सोच में रहता हूँ!!!
कल सब्जी और रोटी घर में खत्म हो गई,
बेटी मेरी भूके पेट ही सो गई!!!
दुखी तो हुआ बेटी को देख कर, लेकिन खुश हूँ हम सब साथ तो हैं,
उन बच्चों से पूछो, जिनके पापा डॉक्टर, पुलिस या किसान हैं???
राशन लेना तो दूर, अब तो सैर करने भी नहीं जा पाते,
कहाँ दोस्तों से मिलकर लड़ाते थे गप-शप,
अब तो बस फोन पर ही रह गई बातें!!!
पड़ोसी के घर मौत हुई, लेकिन अर्थी उठ ना पाई,
थी चार कन्धों की ज़रूरत, घर के लोग थे सिर्फ़ ढाई!!!
सुना है कुछ महज़ब के लोग, थूकने की फिराक में रहते हैं,
यकीन नहीं होता भईया,
दुकानदार चचा तो अपने अल्लाह से हमारी ख़ैरियत की ही फरियाद करते हैं!!!
आख़िर क्या है यह बीमारी जिसने तोड़ी है हिम्मत और रुहान,
कहते हैं ‘मेड इन चाइना”, और जगह का नाम है वुहान!!!
वाइरस के डर से, खाँसी और ज़ुकाम से भी डरता हूँ,
देश के लिए, घर में रहकर, देश की सेवा करता हूँ!!!
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